अस्तित्व
जल चुकी है वो चिता जिसपे बैठा हुआ मेरा तन है,
अब इन लाल लपटों में मिलकर आग बनने का मन है।
या तो हवा से मिलकर खो जाऊंगा आकाश में,
फिर याद रखेगी ये दुनिया मुझे अपनी हर श्वास में।
जब सुलग कर बुझ जाएगी मेरी ये शय्या,
होकर इस धरती का मैं सींचूंगा जीवन नया।
तब त्याग कर इस प्राण को हो जाऊंगा तुम सबसे दूर,
और एक जन्म लेकर फिर आऊंगा मिलने ज़रूर।
यही मेरा अस्तित्व है, यही मेरी पहचान है,
और कोई जीने का मतलब क्या इससे महान है?
Nice
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